पिछली दफा आँखों में एक बेबसी थी, इस दफा प्यार है। पिछली दफा इंतज़ार था, इस दफा इकरार है। पिछली दफा एक हट थी, इस दफा एहसास है। पिछली दफा जीत की बेसब्री थी, इस दफा हार भी स्वीकार है। पिछली दफा एक कश्मकश थी, इस दफा सिर्फ एतबार है। पिछली दफा सिर्फ मंज़िल की चाहत थी, इस दफा सफर पे जान निसार है।
वो कहते हैं मोहब्बत का कोई धर्म नहीं होता, पर इंसानो का तो होता है। मैंने कतरा कतरा मोहब्बत को घुटते देखा है, मेरे शहर से तेरे शहर की दूरी इतनी भी न थी, पर फिर भी मेने खुद को रोका है, जो अगर दिल न टूटे, तो मोहब्बत को किसने देखा है।
ये जो रिश्तो की बंदिशे हैं, कहती है, ज़माने से ना भिड़, ना जाने यहाँ कितने ही गालिबों का दम घुटता है, मैंने रंग बदला, गलियां बदली, पर ये ना समझना की ये डर की सौगात है, जो खुद जलकर ज़माने को रोशन कर दे, मेरे तेरे इश्क़ की ऐसी फरियाद है।
मुझे खुदगर्ज़ न समझना पर मुझे बिखरने से डर लगता है| तेरा मुझपे इस कदर जान छिड़कना, मेरे तपते बदन को अपनी आँखों में महफूज़ रखना, सर्द रातों में मुझे खुदको पहनाना, मुझे पल भर देखने के लिए तेरा वक़्त से झगड़ना, मेरी परछाई छुपने तक तेरा धूप में पिघलना, मेरी ख़ामोशी से तेरा बातें करना, मेरे आँसुओं से खुदके दामन को भीगा देना, मेरी ख्वाहिशों के लिए अपनी ख्वाहिशों को भुला देना, मेरी पहली मोहब्बत के ज़ख्मों को अपने कंधे का सहारा देना, मुझे बचाने के लिए अपनी कश्ती से तेरा कूद जाना, मेरी ना में भी हाँ की तेरी तालाश, मेरे दिल में खुदको रंगने की तेरी बेबाक कोशिशें, मेरे हाथों में अपनी लकीरें खोजने की तेरी चाहतें, मेरी आँखों में खुदकी तस्वीर देखने की तेरी मन्नते, मेरे टूटने से पहले अपनी बाँहों में मुझे जकड़ने की तेरी साजिशें, सब जानकर भी अनजान बनकर, तुझे चाहकर भी तेरे दर पर मेहमान बनकर, रेत सा तेरे हाथों से बिखर जाना मंजूर है मुझे, क्योंकि इस दफा मुझे खोने का नहीं, पाने का डर है, उलझने का नहीं, सुलझने का डर है, नफरत का नहीं, मोहब्बत का डर है|
जो अगर तेरी बेदाग़ रूह को अपनी ओढ़ी हुई चादर से ढक दिया, तो खुदसे हारने लगूंगी, मेरी अधूरी मोहब्बत को तेरे अनछूहे मन से अगर पूरा किया, तो खुदसे भागने लगूंगी, तुझे दरिया में धकेल खुद को बचा लिया, तो मेरा दम निकल जायेगा, तेरे सच्चे इरादों के बेखौफ पैगाम से मेरा सब कुछ बिखर जायेगा, बिखरने से खौफ आता है मुझे, क्योंकि मुझे बिखरा हुआ देख , तू खुदको मिटा आएगा|
में तुझसे कभी नहीं कहूँगी की मेरे आंगन को मेने तेरे ईमान से रंग दिया है, दिन भर की मशक्कत के बाद जब तू अधूरे सपनो संग सोता है, तुझे पल भर निहारने के लिए मेने रातों को दिन में बदला है, कभी कभी तेरे हाथों में मेरी कलम से मेने कुछ लकीरों को उकेरा है, तेरी आहटों से मेरी धड़कने कुछ इस कदर बढ़ जाती हैं, उनकी आवाज़ों को तेरे बेक़रार कानों तक पहुँचने से रोकने के लिए मेने बहुत कुछ खोया है, रेज़ा रेज़ा मखमल पे तुझे बुनने लगी हूँ, फरिश्तों के बीच खुदा की नेमत जैसे तेरे ज़मीर को चुनने लगी हूँ, मेरे सुने पड़े नगमों को तेरी आस है, मरघटों पे जलती मेरी रूह अब तेरे पास है|
धीरे धीरे तू मेरी जन्नतों का हिस्सा बन रहा है, मेरी ज़िन्दगी की सलवटों को कम करने का ज़रिया बन रहा है, आजकल पन्नो के बीच लफ़्ज़ों को दबाने लगी हूँ, मेरे नज़्मों को ज़माने से छुपाने लगी हूँ, तेरी वफ़ाओं को पाने को जी चाहता है, चाहे पूरी कायनात चाँद को तकती रहे, उसकी चांदनी बनने का ख्वाब मेरी रातों को पी जाता है, जर्रा जर्रा तुझसे मिलके मेरी आबरू और भी पाक होगी, मेरे लड़खड़ाते क़दमों को जो अब तेरा सहारा मिल गया है, तो मेरी ज़िन्दगी की हर मुश्किल खाक होगी.
पर फिर भी बेदर्द होक में चलती रहूंगी, एक पल को भी मुड़के नहीं देखूंगी जब तू मेरी पनाह के लिए तड़प रहा होगा, कुछ इस कदर मेरी पहचान से तुझे नफरत करने पे मजबूर कर दूंगी, की मुझसे रुखसत होना ही तेरी नमाज़ होगी.
तुझे मझदार में छोड़ चले जाना मेरी मज़बूरी है, पर अगर तू मुझे संगमरमर समझता रहा तो शमा सा जल जायेगा, अपने वजूद को हर घड़ी बिसरायेगा, ऐसी बेईमान मोहब्बत मेरी हरगिज़ नहीं, मुझे भुला दे ऐसी तेरी हस्ती नहीं, तो क्यों न तुझे मयखानों के हवाले कर तेरे सामने में कालिख सा रंग जाऊँ, जो आंखें अब तक मेरे दीदार को तरसती थी, कहेंगी, ज़माने को क्या दोष दूँ, जब मेरा सनम ही बेवफा निकला.
अफ़सानो में जो मिल जाये मेरी तेरी मोहब्बत ऐसी आम नहीं,
अगर हर मुसाफिर को उसकी मंज़िल मिल जाये, तो सफर का कोई कद्रदाँ नहीं.
M Glad that I could come across this blog through LinkedIn.
Keep Writing Ma’am:)
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Glad you liked it 🙂
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